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कुंडलिया कवि -गिरधर कविराय आईसीएसई कक्षा 9-10

                                  कुंडलिया
                         कवि -गिरधर कविराय


केंद्रीय भाव

गिरधर कविराय द्वारा रचित कुंडलिया काव्य रचना में व्यवहारिक एवं नीतिगत शिक्षा दी गई है| गिरधर कविराय ने सरल सहज सुगम भाषा में अत्यंत उपयोगी जीवन दर्शन किया है प्रस्तुत छंदों में पैदल यात्रियों के लिए लाठी एवं कंबल का महत्व गुणों का महत्व संसार की स्वार्थपरता सत्संगति का महत्व परोपकार तथा सभ्य आचरण आदि विषयों पर कवि ने अपने विचार व्यक्त किए हैं|

संदर्भ:-  प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक साहित्य सागर के पद्य भाग में संकलित कुंडलिया शीर्षक रचना से आधारित है इसके रचयिता गिरधर कविराय जी हैं|

गुण...........  लाठी|

प्रसंग:- इस पद्य में कवि ने लाठी के महत्व को दर्शाया है|

भावार्थ:- पैदल यात्रियों को लाठी की उपयोगिता के विषय में समझाते हुए कभी कहते हैं कि धूल भरे दुर्गम रास्ते पर चलने वाले पथिक! तुम्हें लाठी जैसी उपयोगी वस्तु को देव अपने साथ रखना चाहिए इसकी सहायता से मार्ग में पड़ने वाले गड्ढों, नदी तथा नाले आदि को पार सरलता से किया जा सकता है| जंगल के रास्ते पर कुत्ता या अन्य जानवर आक्रमण करे तो मार भगाया जा सकता है लुटेरों से चोर लुटेरों से या दुश्मनों से अपनी रक्षा की जा सकती है| गिरधर कविराय जी कहते हैं दूसरे सभी शस्त्रों के अपेक्षा लाठी अनेक कार्य में काम आती है| अतः यात्रा में इसे अपने साथ रखना चाहिए|

कमरी............. मर्यादा कमरी|

प्रसंग:- यात्रियों के लिए कंबल की उपयोगिता का वर्णन है|

भावार्थ:-  कंबल बहुत कम दामों में मिलता है परंतु यात्रियों के लिए बड़े काम की वस्तु है इससे  मलमल जैसे कीमती वस्त्रों को धूल मिट्टी से बचाया जा सकता है| आवश्यकता पड़ने पर इसे लपेटकर  गठरी  के रूप में वाहन किया जा सकता है| रात होने पर उसे बिछाकर सोया जा सकता है| कहते हैं कि कंबल बहुत सस्ता होने के साथ-साथ अनेक प्रकार से उपयोगी है | अतः  इसे हमेशा अपने साथ रखना चाहिए|

गुन के गाहक......... गाहक गुण के|

प्रसंग:- इन पंक्तियों में कवि ने गुणों के महत्व पर प्रकाश डाला है|

भावार्थ:- इस संसार में गुणवान व्यक्ति हर जगह सम्मान पाते हैं जबकि गुणहीन व्यक्तियों की कोई कद्र नहीं होती उदाहरण के रूप में कौवा और कोयल दोनों रंग रूप में एक जैसे होते हैं किंतु कोयल की मधुर वाणी उसे सब किसने का पात्र बना देती है जबकि वह अपने कर्कश स्वर के कारण सबकी घृणा का पात्र बन जाता है| गिरिधर कविराय कहते हैं ही मनमानी करने वाले इस संसार में गुणों के ग्राहक किंतु गुणहीनो को कोई नहीं पूछता अतः अपने भीतर गुणों को विकसित करें|

साईं सब........... बिरला कोई साईं|

प्रसंग:- स्वार्थी लोगों से भरा पड़ा है| अतः सच्चे मित्रों की पहचान कर उन्हें सहेजना चाहिए|

 भावार्थ:-  हे सज्जनों! यह संसार बहुत स्वार्थी है यहां पर सब अपने स्वार्थ के लिए मित्रता का दिखावा करते हैं जब तक व्यक्ति के पास धन है तब तक मतलबी लोगों से मित्रता का ढोंग रचते हैं जैसे ही धन समाप्त हो जाता है वैसे यह ढोंगी साथ ही मुंह फेर लेते हैं कहते हैं हे भाई इस जगत की यही रीति है निस्वार्थ प्रेम करने वाले यहां बड़ी मुश्किल से मिलते हैं अतः लोगों को ठीक से पहचान कर ही मित्रता करनी चाहिए और सच्चे मित्र की सदा कद्र करनी चाहिए|

रहिए.......... छाया में रहिए|

प्रसंग:- सदा सफल व सक्षम व्यक्ति की संगति में रहना चाहिए|

भावार्थ:- कभी कहते हैं कि कभी कमजोर वृक्ष के आश्रय नहीं लेना चाहिए भले ही हमें कष्ट में दिन काटना पड़े पतले वृक्ष की छाया में बैठने से तो अच्छा ही है कि धूप में ही सोया जाए कमजोर का कोई भरोसा नहीं जरा सी तेज हवा चलते ही जड़ से उखड़ जाएगा गिरधर कविराय जी कहते हैं कि घना और मजबूत वृक्षाचे लेने योग्य होता है क्योंकि घोर आंधी तूफान में भी वह अपने स्थान पर अडिग खड़ा रहता है उसकी पत्तियां भले ही झड़ जाए छाया बनी रहती है उदाहरण से कवि क्या शिक्षा देना चाहते हैं कि सदैव सदैव असक्षम व्यक्तियों से मैत्री करनी चाहिए क्योंकि वह लाख विपत्ति में रहते हुए भी हमारा सहायक बना रहता है उस के विपरीत कमजोर व्यक्ति मुश्किल समय में स्वयं ही संभल सकेगा और ना ही हमें ही सहारा दे सकेगा अतः बल बुद्धि तथा धन से संपन्न व्यक्ति की ही शरण लेने योग्य होत| है|

पानी........ पानी

संदर्भ:- इस पद्य में कवि ने सदाचार एवं परोपकार का जीवन व्यतीत करने की शिक्षा दी है|

भावार्थ :- नाव में पानी और घर में धन यदि बढ़ जाए तो उसे दोनों हाथों से बाहर निकाल देना चाहिए इसी में बुद्धिमानी है जिस तरह नाव में भरा हुआ पानी उसे डुबो देता है उसी तरह धन मनुष्य कारण बन जाते हैं उस में अनेक प्रकार की बुराइयां आ जाती हैं बुद्धिमान और ज्ञानी व्यक्ति सदैव ईश्वर का स्मरण करते हुए उसे अपने जीवन परोपकार में लगा देता है दूसरों के कल्याण के लिए अपने प्राण भी निछावर पूर्वज ऋषि मुनियों का यही कथन है कि मनुष्य को सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं वह सदैव अपने सम्मान की रक्षा करनी चाहिए सज्जन अपनी संपत्ति का संचय परोपकार के लिए करते हैं|

राजा.............. राजा |

प्रसंग:-
इस पद्य में सभा में सभ्यता पूर्ण आचरण अपनाने की शिक्षा दी है|

भावार्थ:- कवि कहते हैं कि राजा के दरबार में उपयुक्त समय पर पहुंचना चाहिए वहां पर अपनी हैसियत के अनुरूप की स्थान ग्रहण करना चाहिए ऐसे स्थान पर ना बैठे जहां से आप को अपमानित कर के उठा दिया जाए सभा में मौन होकर बैठना चाहिए ऊंचे स्वर में नहीं रखना चाहिए या सभ्यता की निशानी नहीं है पूछे जाने पर ही अपनी बात करनी चाहिए राजा के सामने उचित समय पर ही अपनी फरियाद रखनी चाहिए बहुत आतुरता दिखाने पर राजा क्रोधित भी हो सकते हैं
                 इस पद्य में कवि ने तत्कालीन परिस्थिति के अनुसार व्यवहारिक शिक्षा दी है|

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