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साखी कबीर दास के दोहे आईसीएसई कक्षा 9-10

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                                         साखी
                               कवि : - कबीर दास

लेखक परिचय:-

कबीरदास हिंद के संत कवियों में कबीरदास का सर्वोच्च स्थान है इनका जन्म संवत् 1455 को माना जाता है कबीर ने प्रसिद्ध वैष्णव संत स्वामी रामानंद से दीक्षा ली कुछ  लोग शेख तकी का विशेष्य मानते थे कबीर निर्गुण तथा निराकार ईश्वर के उपासक थे इसलिए उन्होंने मूर्ति पूजा कर्मकांड तथा बाहरी आडंबर का खुलकर विरोध किया कबीर दास की वाणी संग्रह बीजक नाम से प्रसिद्ध है इसके तीन भाग है साखी सबद और रमैनी

प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक 'साहित्य सागर' के pध्य भाग में संकलित साखियों शीर्षक रचना से अवतरित है इसके रचयिता प्रमुख संत कवि कबीरदास जी हैं|

गुरु गोविंद............... दीया बताएं

प्रसंग :- प्रस्तुत दोहे में गुरु के महत्व को दर्शाया गया है

भावार्थ :- कवि कहते हैं कि मेरे सम्मुख ईश्वर और गुरु दोनों पर स्थित है माया निश्चय नहीं कर पा रहा हूं कि पहले किस के चरणों में शीश झुकाऊं सर्वप्रथम मैं गुरु के चरणों में नमन करता हूं क्योंकि उन्होंने ही मुझे ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दर्शाया है गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान से ही मनुष्य को सत्य स्वरुप ईश्वर का बोध होता है गुरु जी उसे अज्ञानता के अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है अतः कबीर दास जी ने मनुष्य की जीवन गुरु के महत्व पर बल दिया है

जब मैं था................ दो ना समाही

 प्रसंग:- ईश्वर की प्राप्ति के लिए मन से अहंकार निकालना होता है

कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे मन में अहंकार का भाव था तब तक मुझे ईश्वर के दर्शन नहीं हुए अब जब मेरे मन का अंधकार मिट गया है तब मुझे सर्वत्र ईश्वर का ही रूप दिखाई देता है प्रेम का मार्ग अत्यंत सकरा होता है इश्क में दो लोग के लिए स्थान नहीं होता है इसमें या तो अहंकारी रहेगा या भगवान ईश्वर के प्रेम में स्वयं को मिटाकर ही उन्हें प्राप्त किया जा सकता है

कांकर पाथर जोरि.......... या खुदा ए खुदाय

प्रस्तुत :-दोहे में कबीर दास जी ने धार्मिक कर्मकांड पर कटाक्ष किया है

भावार्थ  :-कबीर दास जी ने मुस्लिम समाज को उसके धार्मिक आडंबरों पर फट करते हुए कहते हैं कि कंकर पत्थर जोड़कर मस्जिद बनाई उस पर चढ़कर तुम्हारे मौलवी ऊंचे स्वर में  अजान देकर अल्लाह को पुकारते हैं क्या तुम्हारा खुदा बहरा हो गया है? कबीर दास जी के अनुसार इस प्रकार का आडंबर से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है उन्हें प्राप्त करने के लिए अपने अंतर्मन में झांकना आवश्यक है पवित्र मन से सत्य मुख्य मार्ग पर चलकर ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है

पाहन पूजे...... पीस खाए संसार

   प्रस्तुत :- दोहे में कवि ने मूर्ति पूजा पर व्यंग किया है

भावार्थ:-  मूर्ति पूजा जैसे कर्मकांडों पर व्यंग करते हुए कबीर दास जी ने हिंदू समुदाय समुदाय को भी फटकार लगाई है वह कहते हैं कि पत्थर को पूजनीय से भगवान मिलते हैं तो मैं पत्थर के पहाड़ की पूजा करने को तैयार हूं मूर्ति की पूजा करने से तो बेहतर है कि हम घर में रखी चक्की की पूजा करें जिसके पीछे अनाज को खाकर जगत का पेट भरता है कबीर दास जी ने धार्मिक कट्टरता एवं बाह्य आडंबरों का डट कर विरोध किया है एक समाज सुधारक कवि थे

सात समुद्र........ लिखा न जाए

प्रसंग :- ईश्वर की महिमा का वर्णन करना असंभव है

भावार्थ  :-कभी कहते हैं यदि सातों समुद्र की स्याही बनाई जाए और समोसे बनने प्रदेश से लेखनी बनाई दी जाए और सारी
धरती को कागज बना कर प्रभु के गुणों का वर्णन किया जाए तो भी यह सामग्री उनके गुणों का बखान करने के लिए कम पड़ जाएगी घर की महिमा अपरंपार है उसका शब्दों में वर्णन करना किसी के लिए संभव नहीं है

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